| 1 | 01*01 | गुरुदेव | पूरा सतगुरु मिले जो पूजै मन की प्रास |
| 2 | 01*02 | गुरुदेव | सतगुरु सिकलीगर मिलैं तब छुटै पुराना दाग |
| 3 | 01*03 | गुरुदेव | सरबंगी कोउ एक है राखै सब की लाज |
| 4 | 01*04 | गुरुदेव | पर स्वारथ के कारने संत लिया औतार |
| 5 | 01*05 | गुरुदेव | धुन आनै जो गगन की सो मेरा गुरुदेव |
| 6 | 01*06 | गुरुदेव | नाव मिली केवट नहीं कैसे उतरै पार |
| 7 | 01*07 | गुरुदेव | धुबिया फिर मर जायगा चादर लीजै धोय |
| 8 | 01*08 | गुरुदेव | साहिब वही फकीर है जो कोइ पहुँचा होय |
| 9 | 01*09 | गुरुदेव | रैयत कौन कहावै घर घर हाकिम होय |
| 10 | 01*10 | गुरुदेव | जग खीझै तो का भया रीझै सतगुरु संत |
| 11 | 02*01 | नाम | नाम नाम सब कहत है नाम न पाया कोय |
| 12 | 02*02 | नाम | लहना है सतनाम का जो चाहै सो लेय |
| 13 | 02*03 | नाम | मीठ बहुत सतनाम है पियत निकारै जान |
| 14 | 02*04 | नाम | संत सनेही नाम है नाम सनेही संत |
| 15 | 02*05 | नाम | दीपक बारा नाम का महल भया उजियार |
| 16 | 02*06 | नाम | नाम केरे परताप से भये आन कै आन |
| 17 | 02*07 | नाम | देखौ नाम प्रताप से सिला तिरै जल बीच |
| 18 | 02*08 | नाम | हाथी घोड़ा खाक है कहै सुनै सो खाक |
| 19 | 02*09 | नाम | हाथ जोरि आगे मिलै लै लै भेट अमीर |
| 20 | 03*01 | सामर्थ | अदल होइ बैकुण्ठ में सब कोई पावै सुक्ख |
| 21 | 03*02 | सामर्थ | देत लेत हैं आपुहीं पलटू पलटू सोर |
| 22 | 04*01 | संत और साध | बड़ा होय तेहि पूजिये संतन किया बिचार |
| 23 | 04*02 | संत और साध | सीतल चन्दन चन्द्रमा तैसे सीतल संत |
| 24 | 04*03 | संत और साध | संत बराबर कोमल दूसर को चित नाहिं |
| 25 | 04*04 | संत और साध | राम समीपी संत हैं वे जो करैं सो होय |
| 26 | 04*05 | संत और साध | संत सासना सहत हैं जैसे सहत कपास |
| 27 | 04*06 | संत और साध | संतन के सिर ताज है सोई संत होइ जाय |
| 28 | 04*07 | संत और साध | तीन लोक से जुदा है उन संतन की चाल |
| 29 | 04*08 | संत और साध | फाका जिकर किनात ये तीनों बात जगीर |
| 30 | 04*09 | संत और साध | कबही फाका फकर है कबही लाख करोर |
| 31 | 04*10 | संत और साध | साध महातम बड़ा है जैसो हरि यस होय |
| 32 | 05*01 | भक्त जन | हरि हरिजन को दुइ कहै. सो नर नरकै जाय |
| 33 | 05*02 | भक्त जन | हरि अपनो अपमान सह जन की सही न जाय |
| 34 | 05*03 | भक्त जन | काम क्रोध जिनके नहीं लगै न भूख पियास |
| 35 | 05*04 | भक्त जन | ना काहू से दुष्टता ना काहू से रोच |
| 36 | 06*01 | पाखंडी | पिसना पीसै राँड़ री पिउ पिउ करै पुकार |
| 37 | 06*02 | पाखंडी | पर दुख कारन दुख सहै सन असंत है एक |
| 38 | 06*03 | पाखंडी | बिस्वा किये सिंगार है बैठी बीच बजार |
| 39 | 06*04 | पाखंडी | हवा हिरिस पलटू लगी नाहक भये फकीर |
| 40 | 06*05 | पाखंडी | जौं लगि फाटै फिकिर ना गई फकीरी खोय |
| 41 | 07*01 | चितावनी | क्या सोवै तू बावरी चाला जात बसंत |
| 42 | 07*02 | चितावनी | खेलु सिताबी फाग तू बीती जात बहार |
| 43 | 07*03 | चितावनी | तू क्यों गफलत में फिरै सिर पर बैठा काल |
| 44 | 07*04 | चितावनी | गरमै गरमै हेलुवा गंफा लीजै मारि |
| 45 | 07*05 | चितावनी | सुर नर मुनि जोगी जती सभै काल बसि होय |
| 46 | 07*06 | चितावनी | चोला भया पुराना आज फटै की काल |
| 47 | 07*07 | चितावनी | धूआँ का धौरेहरा ज्यों बालू की भीत |
| 48 | 07*08 | चितावनी | यही दिदारी दार है सुनहु मुसाफिर लोग |
| 49 | 07*09 | चितावनी | आग लगी लंका दहै उन्चासौ बही बयार |
| 50 | 07*10 | चितावनी | भजन आतुरी कीजिये और बात में देर |
| 51 | 07*11 | चितावनी | यही समय गुरु पाँय में गोता लीजै खाय |
| 52 | 07*12 | चितावनी | भया तगादा साहु का गया बहाना भूल |
| 53 | 07*13 | चितावनी | काल महासिल साहु का सिर पर पहुँचा आय |
| 54 | 07*14 | चितावनी | ज्यों ज्यो सूखै ताल है त्यों-त्यों मीन मलीन |
| 55 | 07*15 | चितावनी | बूड़ी जात जहाज है नाम निवर्तिक बोल |
| 56 | 08*01 | भक्ति | एक भक्ति मैं जानों और झूठ सब बात |
| 57 | 08*02 | भक्ति | संत न चाहैं मुक्ति को नहीं पदारथ चार |
| 58 | 08*03 | भक्ति | ऐसी भक्ति चलावै मची नाम की कीच |
| 59 | 09*01 | प्रेम | मेरे तन तन लग गई पिय की मीठी बोल |
| 60 | 09*02 | प्रेम | पिय को खोजन मैं चली आपुइ गई हिराय |
| 61 | 09*03 | प्रेम | मगन भई मेरी माइजी जब से पाया कंथ |
| 62 | 09*04 | प्रेम | आठ पहर निरखत रहै जैसे चन्द चकोर |
| 63 | 09*05 | प्रेम | अम्मा मेरा दिल लगा मुझ से रहा न जाय |
| 64 | 09*06 | प्रेम | सीस उतारै हाथ से सहज आसिकी नाहिं |
| 65 | 09*07 | प्रेम | भूली जग को चाल सब भई जोगिनि अलमस्त |
| 66 | 09*08 | प्रेम | फनि से मनि ज्यों बीछुरै जल से बिछुरै मीन |
| 67 | 09*09 | प्रेम | प्रेम बान जा के लगा सो जानैगा पीर |
| 68 | 09*10 | प्रेम | अपने पिया की सुन्दरी लोग कहैं बौरान |
| 69 | 09*11 | प्रेम | सतगुरु सब्द के सुनत ही तन की सुधि रहि जात |
| 70 | 09*12 | प्रेम | की तौ इक ठौरै रहै की दुइ में इक मरि जाय |
| 71 | 09*13 | प्रेम | यह तो घर है प्रेम का खाला का घर नाहिं |
| 72 | 09*14 | प्रेम | आसिक का घर दूर है पहुँचै बिरला कोय |
| 73 | 09*15 | प्रेम | जहाँ तनिक जल बीछुड़ै छोड़ि देतु है प्रान |
| 74 | 09*16 | प्रेम | जो मैं हारौं राम की जो जीतौं तौ राम |
| 75 | 10*01 | बिस्वास | लगन महूरत झूठ सब और बिगाड़ै काम |
| 76 | 10*02 | बिस्वास | मोर राम मैं राम का ता से रहौं निसंक |
| 77 | 10*03 | बिस्वास | मगन आपने ख्याल में भाड़ परै संसार |
| 78 | 11*01 | सतसंग | जो कोउ चाहै अभय पद जाइ करै सतसंग |
| 79 | 11*02 | सतसंग | बैरागिनि भूली आप में जल में खोजै राम |
| 80 | 11*03 | सतसंग | मलया के परसंग से सीतल होवत साँप |
| 81 | 11*04 | सतसंग | पारस के परसंग से लोहा महँग बिकान |
| 82 | 11*05 | सतसंग | फिर फिर नहीं दिवारी दियना लीजै बार |
| 83 | 11*06 | सतसंग | जंगल जंगल मैं फिरौं घर में रहै सिकार |
| 84 | 11*07 | सतसंग | बिन खाये चित चैन नहिं खाये आलस होय |
| 85 | 11*08 | सतसंग | जो जो गा सतसंग में सो सो बिगरा जाय |
| 86 | 11*09 | सतसंग | पलटू मेरी बनि परी मुद्दा हुआ तमाम |
| 87 | 12*01 | सतसंग अनधिकारी को | सतगुरु सब को देत हैं लेता नाहीं कोय |
| 88 | 13*01 | शब्द | सबद छुड़ावै राज को सबदै करै फकीर |
| 89 | 13*02 | शब्द | सुरत सब्द के मिलन में मुझ को भया अनंद |
| 90 | 13*03 | शब्द | जोग जुगत आसन नहीं साधन नहीं बिबेक |
| 91 | 14*01 | ध्यान | कमठ दृष्टि जो लावई सो ध्यानी परमान |
| 92 | 14*02 | ध्यान | जैसे कामिनि के बिषय कामी लावै ध्यान |
| 93 | 15*01 | घट मठ | साहिब साहिब क्या करै साहिब तेरे पास |
| 94 | 15*02 | घट मठ | दिल में आवै है नजर उस मालिक का नूर |
| 95 | 15*03 | घट मठ | खोजत खोजत मरि गये घर ही लागा रंग |
| 96 | 15*04 | घट मठ | नजर मँहै सब की पड़ै कोऊ देखै नाहिं |
| 97 | 16*01 | दास | पहिले दासातन करै सो बैराग प्रमान |
| 98 | 16*02 | दास | का जानी केहि औसर साहिब ताकै मोर |
| 99 | 16*03 | दास | खामिन्द कब गोहरावै चाकर रहै हजूर |
| 100 | 17*01 | सूरमा | संत चढ़े मैदान पर तरकस बाँधे ज्ञान |
| 101 | 17*02 | सूरमा | बाना बाँधै लड़ि मरै संत सिपाहि क पूत |
| 102 | 17*03 | सूरमा | काया कोट छुडावै सोई है रजपूत |
| 103 | 17*04 | सूरमा | संत चढ़ै जो मोह पर काया नगर मँझार |
| 104 | 17*05 | सूरमा | लागी गोली नाम की पलटू गया है लोट |
| 105 | 17*06 | सूरमा | लागी गाँसी सबद की पलटू मुआ तुरन्त |
| 106 | 17*07 | सूरमा | जियते मरना भला है नाहिं भला बैराग |
| 107 | 18*01 | पतिव्रता | पतिबरता को लच्छन सब से रहै अधीन |
| 108 | 18*02 | पतिव्रता | सोई सती सराहिये जरै पिया के साथ |
| 109 | 19*01 | उपदेश | हरि को दास कहाय के गुनह करै ना कोय |
| 110 | 19*02 | उपदेश | अपनी ओर निभाइये हारि परै की जीति |
| 111 | 19*03 | उपदेश | काजर दिहे से का भया ताकन को ढव नाहिं |
| 112 | 19*04 | उपदेश | जाकी जैसी भावना तासे तस ब्यौहार |
| 113 | 19*05 | उपदेश | टेढ़ सोझ मुँह प्रापना ऐना टेढ़ा नाहिं |
| 114 | 19*06 | उपदेश | फूली है यह केतकी भौंरा लीजै बास |
| 115 | 19*07 | उपदेश | गुरु की भक्ति और माया ज्यों छूरी तरबूज |
| 116 | 19*08 | उपदेश | पलटू जो सिर ना नवै बिहतर कद्दू होय |
| 117 | 19*09 | उपदेश | राम कृस्न परसराम ने मरना किया कबूल |
| 118 | 19*10 | उपदेश | समुझावै सो भी मरै पलटू को पछिताय |
| 119 | 19*11 | उपदेश | तुझे पराई क्या परी अपनी ओर निबेर |
| 120 | 19*12 | उपदेश | बहता पानी जात है धोउ सिताबी हाथ |
| 121 | 19*13 | उपदेश | जिन जिन पाया बस्तु को तिन तिन चले छिपाय |
| 122 | 19*14 | उपदेश | बीज बासना को जरै तब छूटै संसार |
| 123 | 19*15 | उपदेश | तो कहँ कोऊ कछु कहै कीजै अपनो काम |
| 124 | 19*16 | उपदेश | इहाँ उहाँ कुछ है नहीं अपने मन का फेर |
| 125 | 19*17 | उपदेश | मन की मौज से मौज है और मौज किहि काम |
| 126 | 19*18 | उपदेश | जो साहिब का लाल है सो पावैगा लाल |
| 127 | 19*19 | उपदेश | जीव जाय तो जाय दे जन्म जाय बरु नष्ट |
| 128 | 19*20 | उपदेश | खोजत हीरा को फिरै नहीं पोत को दाम |
| 129 | 19*21 | उपदेश | मूरख को समुझाइये नाहक होइ अकाज |
| 130 | 19*22 | उपदेश | तीन लोक पेरा गया बिना बिचार बिबेक |
| 131 | 19*23 | उपदेश | लोक लाज कुल छाड़ि कै करि लो अपना काम |
| 132 | 19*24 | उपदेश | तन मन लज्जा खोइ कै भक्ति करौ निर्धार |
| 133 | 19*25 | उपदेश | लोक लाज नहिं मानिहौ तन मन लज्जा खोय |
| 134 | 19*26 | उपदेश | जेहि सुमिरे गनिका तरी ता को सुमिरु गँवार |
| 135 | 19*27 | उपदेश | ज्यों ज्यों भीजै कामरी त्यों त्यों गरुई होय |
| 136 | 19*28 | उपदेश | वे बोलैं मैं चुप रहौं आपुइ जाते हारि |
| 137 | 19*29 | उपदेश | जौं लगि लाग हाथ ना करम न कीजै त्याग |
| 138 | 19*30 | उपदेश | दुइ पासाही फकर की इक दुनियाँ इक दीन |
| 139 | 19*31 | उपदेश | चोर मूँसि घर पहुँचा मूरख पहरा दे |
| 140 | 19*32 | उपदेश | पलटू ऐसे दास को भरम करै संसार |
| 141 | 19*33 | उपदेश | बूझि समझि ले बालके पाछे तौ सिर खोलु |
| 142 | 19*34 | उपदेश | पलटू नीच से ऊँच भा नीच कहै ना कोय |
| 143 | 19*35 | उपदेश | हस्ती बिनु मारे मरै करै सिंह को संग |
| 144 | 19*36 | उपदेश | उपजै बस्तु सुभाव तें अपनी अपनी खानि |
| 145 | 19*37 | उपदेश | भक्ति बीज जब बोवै निसि दिन करै बिबेक |
| 146 | 19*38 | उपदेश | पलटू सरबस दीजिये मित्र न कीजै कोय |
| 147 | 19*39 | उपदेश | ख्वा टूटै ख्वा फाटै कहिये परदा खोल |
| 148 | 20*01 | ज्ञान | परदा अंदर का टरै देखि परै तब रूप |
| 149 | 20*02 | ज्ञान | समुझाये से क्या भया जब ज्ञान आपु से होय |
| 150 | 20*03 | ज्ञान | ज्ञान समाधि जा को मिली सो क्या लावै ध्यान |
| 151 | 20*04 | ज्ञान | समुझे को समुझावैं हीरा आगे पोत |
| 152 | 20*05 | ज्ञान | अपनी अपनी करनी अपने अपने साथ |
| 153 | 20*06 | ज्ञान | सरबंगी जो नाम कै रहनी सहित बिबेक |
| 154 | 21*01 | शरण और ब्रत (टेक) | करम धरम सब छाड़ि कै पड़े सरन में आय |
| 155 | 21*02 | शरण और ब्रत (टेक) | पलटू सोवै मगन में साहिब चौकीदार |
| 156 | 21*03 | शरण और ब्रत (टेक) | कोउ कितनौ चुगुली करै सुनै न बात हमार |
| 157 | 21*04 | शरण और ब्रत (टेक) | जौन काछ को काछिये नाच नाचिये सोय |
| 158 | 21*05 | शरण और ब्रत (टेक) | साधु को ऐसा चाहिये ज्यों सिसु३ अड़नि अड़ै |
| 159 | 22*01 | बिनय | पतितपावन बाना धर्यो तुमहिं परी है लाज |
| 160 | 22*02 | बिनय | दीनन पर दाया करौ सुनिये दीनदयाल |
| 161 | 22*03 | बिनय | पलटू पूछै हंस से बिनती कै कर जोर |
| 162 | 23*01 | दीनता | मन मिहीन करि लीजिये जब पिउ लागै हाथ |
| 163 | 23*02 | दीनता | जोग जुगत ना ज्ञान कछु गुरु दासन को दास |
| 164 | 23*03 | दीनता | दूसर पलटू इक रहा भक्ति दई तेहि जान |
| 165 | 24*01 | मान | मान बड़ाई कारने पचि मूआ संसार |
| 166 | 24*02 | मान | खुदी खोय को खोवै सोई है दुरवेस |
| 167 | 24*03 | मान | सब कोइ पीवै कूप जल खारी पड़ा समुन्द |
| 168 | 24*04 | मान | बढ़ते बढ़ते बढ़ि गये जैसे बढ़ी खजूर |
| 169 | 25*01 | भेद | उलटा कूवा गगन में तिस में जरै चिराग |
| 170 | 25*02 | भेद | बंसी बाजी गगन में मगन भया मन मोर |
| 171 | 25*03 | भेद | चढ़ै चौमहले महल पर कुंजी आवै हाथ |
| 172 | 25*04 | भेद | चाँद सुरज पानी पवन नहीं दिवस नहिं रात |
| 173 | 25*05 | भेद | बिनु कागद बिनु अच्छरे बिनु मसि से लिखि देय |
| 174 | 25*06 | भेद | झंडा गड़ा है जाय के हद बेहद के पार |
| 175 | 25*07 | भेद | जागत में एक सूपना मोहिं पड़ा है देख |
| 176 | 26*01 | अद्वैत | जल से उठत तरंग है जल ही माहिं समाय |
| 177 | 26*02 | अद्वैत | कोटिन जुग परलय गई हमहीं करनेहार |
| 178 | 26*03 | अद्वैत | आदि अंत हम हीं रहे सब में मेरो बास |
| 179 | 27*01 | उलटावती | गंगा पाछे को बही मछरी चढ़ी पहार |
| 180 | 27*02 | उलटावती | खसम विचारा मरि गया जोरू गावै तान |
| 181 | 27*03 | उलटावती | खसम मुवा तौ भल भया सिर की गई बलाय |
| 182 | 28*01 | मन | मन मारे मरता नहीं कीन्हे कोटि उपाय |
| 183 | 29*01 | माया | माया ठगनी जग ठगा इकहै ठगा न कोय |
| 184 | 29*02 | माया | माया बड़ी बहादुरी लूटि लिहा संसार |
| 185 | 29*03 | माया | माया की चक्की चलै पीसि गया संसार |
| 186 | 29*04 | माया | नागिनि पैदा करत है आपुइ नागिनि खाय |
| 187 | 29*05 | माया | कुसल कहाँ से पाइये नागिनि के परसंग |
| 188 | 29*06 | माया | पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन देखा चारिउ खूँट |
| 189 | 29*07 | माया | मन माया छोड़े नहीं बझै आपु से जाय |
| 190 | 30*01 | अज्ञानता | घर में जिन्दा छोड़ि कै मुरदा पूजन जायँ |
| 191 | 30*02 | अज्ञानता | जियतै देइ गिरास ना मुए परावै पिंड |
| 192 | 30*03 | अज्ञानता | पानी का को देइ प्यास से मुवा मसाफिर |
| 193 | 30*04 | अज्ञानता | लहँगा परिगा दाग फूहरि साबुन से धोवै |
| 194 | 30*05 | अज्ञानता | अँधरन केरि बजार में गया एक डिठियार |
| 195 | 30*06 | अज्ञानता | सब अँधरन के बीच एक है काना राजा |
| 196 | 31*01 | दुष्ट | अपकारी जिव जाहिंगे पलटू अपने आप |
| 197 | 31*02 | दुष्ट | बनियाँ बानि न छोड़ै पसँघा मारे जाय |
| 198 | 31*03 | दुष्ट | संत रतन की कोठरी कुंजी दुष्टन हाथ |
| 199 | 32*01 | कर्म भर्म्म-देई देवा | अंजन देय न ज्ञान का अंधा भया बनाय |
| 200 | 32*02 | कर्म भर्म्म-देई देवा | जौं लगि परदा पड़ा है धोखा रहा समाय |
| 201 | 32*03 | कर्म भर्म्म-देई देवा | बस्तु धरी है पाछे आगे लिहिनि तकाय |
| 202 | 32*04 | कर्म भर्म्म-देई देवा | झूठै में सब जग चला छिल छिल जाता अंग |
| 203 | 32*05 | कर्म भर्म्म-देई देवा | लड़िका चूल्हे में लुका ढूँढ़त फिरै पहार |
| 204 | 32*06 | कर्म भर्म्म-देई देवा | सूधी मारग मैं चलौं हँसै सकल संसार |
| 205 | 32*07 | कर्म भर्म्म-देई देवा | भरमि भरमि सब जग मुवा झूठा देवा सेव |
| 206 | 32*08 | कर्म भर्म्म-देई देवा | संत चरन को छोड़ि कै पूजत भूत बैताल |
| 207 | 32*09 | कर्म भर्म्म-देई देवा | लिये कुल्हाड़ी हाथ में मारत अपने पाँय |
| 208 | 32*10 | कर्म भर्म्म-देई देवा | सात पुरी हम देखिया देखे चारो धाम |
| 209 | 32*11 | कर्म भर्म्म-देई देवा | घर में मेवा छोड़ि के टेंटी बीनन जाय |
| 210 | 32*12 | कर्म भर्म्म-देई देवा | लम्बा घूँघट काढ़ि कै लगवारन से प्रीति |
| 211 | 32*13 | कर्म भर्म्म-देई देवा | बहुत पुरुष के भोग से बिस्वा होइ गई बाँझ |
| 212 | 32*14 | कर्म भर्म्म-देई देवा | पलटू तन करु देवहरा मन करु सालिगराम |
| 213 | 32*15 | कर्म भर्म्म-देई देवा | सूधी मेरी चाल है सब को लागै टेढ़ |
| 214 | 32*16 | कर्म भर्म्म-देई देवा | मैं अपने रँग बावरी जरि जरि मरते लोग |
| 215 | 33*01 | जीव-हिंसा | लहम कुल्लहुम जिसिम का नबी किया फर्मूद |
| 216 | 33*02 | जीव-हिंसा | गरदन मारै खसम की लगवारन के हेत |
| 217 | 34*01 | जाति भेद | हरि को भजै सो बड़ा है जाति न पूछै कोय |
| 218 | 34*02 | जाति भेद | साहिब के दरबार में केवल भक्ति पियार |
| 219 | 34*03 | जाति भेद | गनिका गिद्ध अजामिल सदना औ रैदास |
| 220 | 35*01 | निन्दक | निन्दक जीवै जुगन जुग काम हमारा होय |
| 221 | 35*02 | निन्दक | निन्दक रहै जो कुसल से हम को जोखों नाहिं |
| 222 | 35*03 | निन्दक | निन्दक है परस्वारथी करै भक्त का काम |
| 223 | 36*01 | मिश्रित | बनिया पूरा सोई है जो तौलै सत नाम |
| 224 | 36*02 | मिश्रित | भीतर औं टै तत्व को उठै सबद की खानि |
| 225 | 36*03 | मिश्रित | बार बार बिनती करै पलटूदास न लेइ |
| 226 | 36*04 | मिश्रित | सुरति सुहागिनि उलटि कै मिली सबद में जाय |
| 227 | 36*05 | मिश्रित | कहँ खोजन को जाइये घरहीं लागा रंग |
| 228 | 36*06 | मिश्रित | मन माया में मिलि गया मारा गया बिबेक |
| 229 | 36*07 | मिश्रित | देखो जिउ की खोय को फिर फिर गोता खाय |
| 230 | 36*08 | मिश्रित | मुए पार की बात है फिरै न कोऊ एक |
| 231 | 36*09 | मिश्रित | चिन्ता रूपी अगिन में जरै सकल संसार |
| 232 | 36*10 | मिश्रित | जा को निरगुन मिला है भूला सरगुन चाल |
| 233 | 36*11 | मिश्रित | अमृत को सागर भर् यो देखे प्यास न जाय |
| 234 | 36*12 | मिश्रित | जैस नद्दी एक है बहुतेरे हैं घाट |
| 235 | 36*13 | मिश्रित | साध बचन साचा सदा जो दिल साचा होय |
| 236 | 36*14 | मिश्रित | महीं भुलाना फिरत हौं कि जगतै गया भुलाय |
| 237 | 36*15 | मिश्रित | जगत भगत से बैर है चारो जुग परमान |
| 238 | 36*16 | मिश्रित | लेहु परोसिनि झोपड़ा नित उठि बाढ़त रार |
| 239 | 36*17 | मिश्रित | सिध चौरासी नाथ नौ बीचै सभै भुलान |
| 240 | 36*18 | मिश्रित | हंस चुगैं ना घोंघी सिंह चरै न घास |
| 241 | 36*19 | मिश्रित | कृस्न कन्हैया लाल है वह गोकुल के घाट |
| 242 | 36*20 | मिश्रित | गिरहस्थी में जब रहे पेट को रहे हैरान |
| 243 | 36*21 | मिश्रित | भरि भरि पेट खिलाइये तब रीझैगा भेष |
| 244 | 36*22 | मिश्रित | कौड़ी गाँठिन राखई हमा-नियामत खाय |
| 245 | 36*23 | मिश्रित | जब देखो तब सादी नौबत आठौ पहर |
| 246 | 36*24 | मिश्रित | रन का चढ़ना सहज है मुसकिल करना जोग |
| 247 | 36*25 | मिश्रित | आगि लागि मसि जरि गई कागद जरै न कोय |
| 248 | 36*26 | मिश्रित | तबक चारदह अन्दर है अस्थल बे दरियाव |
| 249 | 36*27 | मिश्रित | बस्ती माहिं चमार की बाम्हन करत बेगार |
| 250 | 36*28 | मिश्रित | कुत्ता हाँड़ी फँसि मुवा दोस परोसि क देय |
| 251 | 36*29 | मिश्रित | जा के रथ पर राम हैं को करि सकै अकाज |
| 252 | 36*30 | मिश्रित | होनी रही सो ह्वै गई रोइ मरै संसार |
| 253 | 36*31 | मिश्रित | सिव सक्ती के मिलन में मो कौ भयौ अनन्द |
| 254 | 36*32 | मिश्रित | ऐसा ब्राह्मन मिलै जो ताके परछौं पाँय |
| 255 | 36*33 | मिश्रित | सब बैरागी बटुरि कै पलटुहि किया अजात |
| 256 | 36*34 | मिश्रित | हींग लगाइस भात में भूल गई है नार |
| 257 | 36*35 | मिश्रित | घरिया औटै तत्व की परै नाम टकसार |
| 258 | 36*36 | मिश्रित | सतगुरु के परताप से पकरा पाँचो चोर |
| 259 | 36*37 | मिश्रित | दूसर जनमत मारिये की बरु रहिये बाँझ |
| 260 | 36*38 | मिश्रित | आगि लगो वहि देस में जहँवाँ राजा चोर |
| 261 | 36*39 | मिश्रित | यह अचरज हम देखिया कानी काजर देइ |
| 262 | 36*40 | मिश्रित | मुसलमान रब्बी मेरी हिन्दू भया खरीफ |
| 263 | 36*41 | मिश्रित | नाचन को ढँग नाहिं है कहती आँगन टेढ़ |
| 264 | 36*42 | मिश्रित | पलटू खोजै पूरबे घर में है जगन्नाथ |
| 265 | 36*43 | मिश्रित | आन को सेंदुर देखि कै तू का फोरै लिलार |
| 266 | 36*44 | मिश्रित | पलटू पारस नाम का मनै रसायन होय |
| 267 | 36*45 | मिश्रित | कहत फिरत हम जोगी, पक्का दुइ सेर खाय |
| 268 | 36*46 | मिश्रित | जल पषान को छोड़ि कै पूजौ आतम देव |